उद्भ्रांत की 'स्वयंप्रभा' : रामायण के अल्प-ज्ञात चरित्र की पुनर्रचना
उद्भ्रांत की ' स्वयंप्रभा ' : रामायण के अल्प-ज्ञात चरित्र की पुनर्रचना दिनेश कुमार माली , तालचेर उद्भ्रांत जी द्वारा रचित प्रबंध - काव्य ‘ स्वयंप्रभा ’ का रचनाकाल अप्रैल 1990 से अक्टूबर 1990 है। यह काव्य भावना , प्रकाशन दिल्ली से प्रकाशित हुआ था। जब मैं सन् 2015 में उद्भ्रांत जी के नोएडा स्थित आवास-स्थल पर मिलने गया था , तब उन्होंने मुझे उसकी प्रति अवलोकनार्थ भेंट की थी। सही कहूँ तो उस समय तक मुझे ‘ स्वयंप्रभा ’ के बारे में बिलकुल भी जानकारी नहीं थी कि वह रामायण की ऐसी विशिष्ट महिला पात्र है , जो पल भर के लिए आती है , मगर उनके योगदान के बिना रामायण अधूरी ही रह जाती। इसके अतिरिक्त , मेरे लिए आश्चर्य की बात यह थी , कि उद्भ्रांत जी ने रामायणकालीन महिला पात्रों को उनके प्रसिद्ध महाकाव्य ‘ त्रेता ’ में स्वयंप्रभा का कोई उल्लेख नहीं किया है। मेरे हिसाब से इसका कारण यह हो सकता है कि ‘ स्वयंप्रभा ’ पर पहले से ही उन्होंने एक स्वतंत्र प्रबंध-काव्य की भी रचना कर डाली थी। थके-हारे , निश्चित समय में सीता माता को न खोज पाने के भय से व्याकुल , वानर सम