उन्नीसवाँ सर्ग- सुरसा
उन्नीसवाँ सर्ग- सुरसा
कवि उद्भ्रांत ने सुरसा के चरित्र का वर्णन
करने के लिए सुरपुर के नरेश इंद्र को सीता के अपहरण की घटना के बारे में जानकारी
होने तथा अपनी दत्तक पुत्री स्वयंप्रभा द्वारा सीता की खोज हेतु वन में तपश्चर्या
में लीन होने,
गिद्धराज जटायु के बड़े भाई सम्पाति के माध्यम से लंका के अशोक वन
में सीता का पता लगाने पर जामवंत के परामर्श, किष्किन्धा
नरेश सुग्रीव के मित्र हनुमान द्वारा लंका जाने के लिये समुद्र की उड़ान आदि घटनाओं
को लेकर सुरसा का परिचय बताया है कि सुरपुर के नरेश इंद्र को रावण के शक्तिशाली
होने की चिंता सता रही थी। यही नहीं रावण के पुत्र मेघनाद ने भी धोखे से इन्द्र को परास्त किया था। इसके अतिरिक्त, लंका के चारों तरफ एक अभेद्य दुर्ग है, गुप्तचरों का
विशाल तंत्र है और अगर हनुमान असफल हो गए, तो अनर्थ हो जाएगा। इसलिए हनुमान की
शक्ति, बुद्धिमत्ता के परीक्षण हेतु सुरसा को इंद्र ने
समुद्र में जलपोत लेकर भेजा। वायुगति से तैरते हुए हनुमान को रोक कर लंका जाने के
उद्देश्य के बारे में समुद्र रक्षक के रूप में अपना परिचय देते हुए पूछा, तो
हनुमान जी ने कहा मैं जल में हूँ और मुझमें है जल, प्राणवायु
मुझमें आती जाती है लोग मुझे वायुपुत्र भी कहते हैं और मैं सीता की खोज में निकला
हूँ। तो सुरसा ने उसे समुद्रों के बड़े-बड़े मगरमच्छों तथा लंका नगरी में लंका के
विकट राक्षसों का डर दिखाया। अब हनुमान ने उत्तर दिया कि उसे सोने का न तो कोई लोभ
है और न ही राक्षसों का भय। तब सुरसा ने स्त्रियोचित वशीकरण विद्या का प्रयोग करते
हुए अपने अप्रतिम सौंदर्य की ओर ध्यान आकृष्ट करने का प्रयास किया। मगर हनुमान के
प्रति सम्मोहन की सुरसा की चेष्टा, विरत तृष्णा, इंद्रिय-निग्रह, बाल-ब्रह्मचारी हनुमान के समक्ष तृणवत थी। ये सब परीक्षा होने के बाद
सुरसा को इस बात का ज्ञान हो गया था कि लंका भेदने में हनुमान को अवश्य सफलता
मिलेगी। यह कहते हुए उसने हनुमान को आशीर्वाद दिया कि आने वाला युग तुम्हारा
कृतज्ञ होगा, तुम्हारी पूजा करेगा। इसमें कवि उद्भ्रांत ने
सुरसा को जलपोत द्वारा भेजने तथा हनुमान के वायुगति से समुद्र तैरने की कथा को
आधुनिक दृष्टि देते हुए, अपनी मौलिकता के साथ-साथ मिथकीय
चरित्रों में अलौकिकता का वर्णन किए बगैर अपने वैज्ञानिक दृष्टिकोण को पाठकों के
सम्मुख रखा है।
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